- Get link
- X
- Other Apps
Featured post
- Get link
- X
- Other Apps
1
करुण पुकार! करुण पुकार!
मानवता करती उद्भूत
कैसे दानवता के पूत,
जो पिशाचपन को अपनाकर
बनते महानाश के दूत,
जिनके पग से कुचला जाकर जग-जीवन करत चीत्कार।
करुण पुकार! करुण पुकार!
2
मानव हो व्यक्तित्व विहीन,
जड़, निर्मम, निर्बुद्धि मशीन,
आततायियों के इंगित पर
करता नंगा नाच नवीन,
युग-युग की सभ्यता देख यह कर उठती है हाहाकार।
करुण पुकार! करुण पुकार!
3
कारागारों का प्राचीर
बंदी करता कभी शरीर
चोर, डाकुओं, हत्यारों का;
आज जालिमों की जंजीर
में जकड़े आदर्श सड़ रहे, घुटते हैं उत्कृष्ट विचार।
करुण पुकार! करुण पुकार!
करुण पुकार! करुण पुकार!
मानवता करती उद्भूत
कैसे दानवता के पूत,
जो पिशाचपन को अपनाकर
बनते महानाश के दूत,
जिनके पग से कुचला जाकर जग-जीवन करत चीत्कार।
करुण पुकार! करुण पुकार!
2
मानव हो व्यक्तित्व विहीन,
जड़, निर्मम, निर्बुद्धि मशीन,
आततायियों के इंगित पर
करता नंगा नाच नवीन,
युग-युग की सभ्यता देख यह कर उठती है हाहाकार।
करुण पुकार! करुण पुकार!
3
कारागारों का प्राचीर
बंदी करता कभी शरीर
चोर, डाकुओं, हत्यारों का;
आज जालिमों की जंजीर
में जकड़े आदर्श सड़ रहे, घुटते हैं उत्कृष्ट विचार।
करुण पुकार! करुण पुकार!
Harivansh Rai Bachchan Kavita
Hindi Kavita
Kavita
Poem
Poetry
कविता
धार के इधर उधर हरिवंशराय बच्चन
हिंदी कविता
- Get link
- X
- Other Apps
Comments
Post a Comment