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दुख में

( १ )
"पड़ी दुखों की तुझ पर मार !
दुखों में सुख भरा जान तू,
रो रो कर मुख न कर म्लान तू,
हँस, हँस, हलका हो जाएगा तेरे दुख का भार ।

( २ )
निज बल पर जिनको अभिमान
संकट में साहस दिखलाते,
दुखों को हैं दूर हटाते
दुख पड़ने पर जो हँसते हैं वही वीर बलवान" ।

( ३ )
"मिले मुझे दुख लाखों बार,
पर, दुख में सुख सार समाया-
व्यंग, समझ मैं कभी न पाया ।
सुख में हंसूं, दुखों में रोऊँ-सीधा सा व्यवहार ।

( ४ )
कोमल से कोमल भी शूल
जब जब है तन मेरे गड़ता,
बच्चों सा मैं हूं रो पड़ता,
कांटों को मैं कभी न अब तक समझ सका हूँ फूल ।

( ५ )
एक नियम जीवन में पाल
रहा सदा से हूँ मैं अविचल,
कोई कहे बली या निर्बल,
उन्हें चुभा रहने देता हूँ, देता नहीं निकाल !"

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