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देश के नाविकों से

1
कुछ शक्ल तुम्हारी घबराई-घबराई-सी
दिग्भ्रम की आँखों के अन्दर परछाईं सी,
तुम चले कहाँ को और कहाँ पर पहुँच गए।
लेकिन, नाविक,
होता ही है
तूफान प्रबल।
2
यह नहीं किनारा है जो लक्ष्य तुम्हारा था,
जिस पर तुमने अपना श्रम यौवन वारा था;
यह भूमि नई, आकाश नया, नक्षत्र नए।
हो सका तुम्हारा
स्वप्न पुराना
नहीं सफल।
3
अब काम नहीं दे सकते हैं पिछले नक्शे,
जिनको फिर-फिर तुम ताक रहे हो भ्रान्ति ग्रसे,
तुम उन्हें फाड़ दो, और करो तैयार नये।
वह आज नहीं
संभव है, जो
था संभव कल।

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