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प्यार और संघर्ष

प्यार को संघर्ष मत, सुन्दरि, बनाओ!

अँखमिचौनी खेलती हो खूब खेलो,
खोज लूँगा, तुम कहीं भी आड़ ले लो,
खेल कब होगा ख़तम, यह तो बताओ,
प्यार को संघर्ष मत, सुन्दरि, बनाओ!

खेल कल का हो गया संग्राम, देखो
कुछ नहीं खोया, अगर परिणाम देखो,
जीत जाओगी अगर तुम हार जाओ,
प्यार को संघर्ष मत, सुन्दरि, बनाओ!

प्रीति पुर में हैं हुए बंदी विजित कब,
बन्धनों में बाँध लो, कर लो विजय तब,
यह न मानो, एक मानी को गंवाओ,
प्यार को संघर्ष मत, सुन्दरि, बनाओ!

प्रेरणा पर्याप्त थी मुझको हृदय की,
तुम समझती हो नहीं भाषा प्रणय की,
यह समय का व्यँग था-तुम दूर जाओ,
प्यार को संघर्ष मत, सुन्दरि, बनाओ!

जिस तरह शिशिरान्त में कंकाल तरु पर
फैलती पत्रावली सहसा विहँसकर,
वृक्ष-जीवन में अगर तुम इस तरह से
आ नहीं सकतीं सहज ही तो न आओ
प्यार को संघर्ष मत, सुन्दरि, बनाओ!

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