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1
कटक संवार शत्रु देश पर चढ़ा,
घमंड, घोर शोर से भरा बढ़ा,
स्वतंत्र देश, उठ इसे सबक सिखा,
बहुत हुई
न देर अब
लगा जरा।
2
समस्त शक्ति युद्ध में उड़ेल दे,
ग़नीम को पहाड़ पार ठेल दे,
पहाड़ पंथ रोकता, ढकेल दे,
बने नवीन
शौर्य की
परंपरा।
3
न दे, न दे, न दे स्वदेश की भुईं,
जिसे कि नोक से दबा सके सुई,
स्वतंत्र देश की प्रथम परख हुई,
उतर खरा,
उतर खरा,
उतर खरा।
कटक संवार शत्रु देश पर चढ़ा,
घमंड, घोर शोर से भरा बढ़ा,
स्वतंत्र देश, उठ इसे सबक सिखा,
बहुत हुई
न देर अब
लगा जरा।
2
समस्त शक्ति युद्ध में उड़ेल दे,
ग़नीम को पहाड़ पार ठेल दे,
पहाड़ पंथ रोकता, ढकेल दे,
बने नवीन
शौर्य की
परंपरा।
3
न दे, न दे, न दे स्वदेश की भुईं,
जिसे कि नोक से दबा सके सुई,
स्वतंत्र देश की प्रथम परख हुई,
उतर खरा,
उतर खरा,
उतर खरा।
Harivansh Rai Bachchan Kavita
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Poetry
कविता
धार के इधर उधर हरिवंशराय बच्चन
हिंदी कविता
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