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1 हृदय भविष्य के सिंगार में लगे,
दिमाग़ जान ले अतीत की रगें,
नयन अतंद्र वर्तमान में जगें-- स्वदेश को
सुजान एक
चाहिए।
2 जिसे विलोक लोग जोश में भरें,
जिसे लिए जवान शान से बढ़ें,
जिसे लिये जिएं, जिसे लिये मरें,
स्वदेश को
निशान एक
चाहिए।
3 कि जो समस्त जाति की उभार हो,
कि जो समस्त जाति की पुकार हो,
कि जो समस्त जाति-कंठहार हो,
स्वदेश को
ज़बान एक
चाहिए।
दिमाग़ जान ले अतीत की रगें,
नयन अतंद्र वर्तमान में जगें-- स्वदेश को
सुजान एक
चाहिए।
2 जिसे विलोक लोग जोश में भरें,
जिसे लिए जवान शान से बढ़ें,
जिसे लिये जिएं, जिसे लिये मरें,
स्वदेश को
निशान एक
चाहिए।
3 कि जो समस्त जाति की उभार हो,
कि जो समस्त जाति की पुकार हो,
कि जो समस्त जाति-कंठहार हो,
स्वदेश को
ज़बान एक
चाहिए।
Harivansh Rai Bachchan Kavita
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कविता
धार के इधर उधर हरिवंशराय बच्चन
हिंदी कविता
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