- Get link
- X
- Other Apps
Featured post
- Get link
- X
- Other Apps
तुमने
प्रतिमा का सिर काट लिया,
पर लोगों ने उसे सिर झुकाना नहीं छोड़ा है।
तुमने मूर्ति को नहीं तोड़ा,
लोगों की आस्था को नहीं तोड़ा है।
और आस्था ने
बहुत बार
कटे सिर को कटे धर से जोड़ा है।
प्रतिमा का सिर काट लिया,
पर लोगों ने उसे सिर झुकाना नहीं छोड़ा है।
तुमने मूर्ति को नहीं तोड़ा,
लोगों की आस्था को नहीं तोड़ा है।
और आस्था ने
बहुत बार
कटे सिर को कटे धर से जोड़ा है।
Harivansh Rai Bachchan Kavita
Hindi Kavita
Kavita
Poem
Poetry
उभरते प्रतिमानों के रूप हरिवंशराय बच्चन
कविता
हिंदी कविता
- Get link
- X
- Other Apps
Comments
Post a Comment