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देश-विभाजन-२

1
दिखे अगर कभी मकान में झरन,
सयत्न मूँदते उसे प्रवीण जन,
निचिंत बैठना बड़ा गँवारपन,
कि जब समस्त
देश में
दरार हो।
2
रहे न साथ एक साथ जब रहे,
अलग, विरुद्ध पंथ आज तो गहे,
यही मिलाप है कि राम मुँह कहे,
मगर बग़ल
छिपी हुई
कटार हो।
3
सुदूर शत्रु सेन साजने लगा,
पड़ोस-का फ़िराक में कि दे दग़ा,
कहीं अचेत ही न जाय तू ठगा,
समय रहे
स्वदेश
होशियार हो।

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