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किरणे बता गईं / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

सूरज से किरणे उतरी हैं,
बैठ धूप के घोड़ों पर।
नजर लगी है शीला के घर,
बनते गरम पकोड़ों पर।

घोड़ों सहित रसोई की वे,
खिड़की से भीतर आईं।
गरम चाय से भरी केतली,
देख-देख कर मुस्काईं।

गरम चाय के साथ पकोड़ों,
का आनंद उठाएंगी।
किरणे बता गईं शीला को,
रोज-रोज वे आएंगीं।

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