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किताब / श्रीप्रसाद

हम किताब के साथ बढ़े हैं
लेकर इसे पहाड़ चढ़े हैं
यही नदी है, यह सागर है
सभी ज्ञान की यह सागर है
यह तुलसी है, यह कबीर है
सच्चा मित्र, अचूक तीर है
धोखा, झूठ, फरेब नहीं है
इसमें कोई ऐब नहीं है
यह मन में सपने बुनती है
यह मन की बातें सुनती है
हम इसको लेकर खुश रहते
खेल-खेल अनचाहा सहते
इससे जब करते हैं बातें
हँसता दिन हँसती हैं रातें
हम किताब के क्या गुण गायें
इसको बस हम पढ़ें-पढ़ाएँ।

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