- Get link
- X
- Other Apps
Featured post
- Get link
- X
- Other Apps
आज आहत मान, आहत प्राण!
कल जिसे समझा कि मेरा
मुकुर-बिंबित रूप,
आज वह ऐसा, कभी की हो न ज्यों पहचान।
आज आहत मान, आहत प्राण!
'मैं तुझे देता रहा हूँ
प्यार का उपहार',
'मूर्ख मैं तुझको बनाती थी निपट नादान।'
आज आहत मान, आहत प्राण!
चोट दुनिया-दैव की सह
गर्व था, मैं वीर,
हाय, ओड़े थे न मैंने
शब्द-भेदी-बाण।
आज आहत मान, आहत प्राण!
कल जिसे समझा कि मेरा
मुकुर-बिंबित रूप,
आज वह ऐसा, कभी की हो न ज्यों पहचान।
आज आहत मान, आहत प्राण!
'मैं तुझे देता रहा हूँ
प्यार का उपहार',
'मूर्ख मैं तुझको बनाती थी निपट नादान।'
आज आहत मान, आहत प्राण!
चोट दुनिया-दैव की सह
गर्व था, मैं वीर,
हाय, ओड़े थे न मैंने
शब्द-भेदी-बाण।
आज आहत मान, आहत प्राण!
Harivansh Rai Bachchan Kavita
Hindi Kavita
Kavita
Poem
Poetry
आकुल अंतर हरिवंशराय बच्चन
कविता
हिंदी कविता
- Get link
- X
- Other Apps
Comments
Post a Comment