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आकुल अंतर हरिवंशराय बच्चन कविता संग्रह

मुझको भी संसार मिला है

कवि तू जा व्यथा यह झेल

नई यह कोई बात नहीं

एकाकीपन भी तो न मिला।

आज ही आना तुम्हें था

मैं समय बर्बाद करता

क्या है मेरी बारी में

अरे है वह शरणस्थल कहाँ

अरे है वह अंतस्तल कहाँ

मैं अपने से पूछा करता

क्षीण कितना शब्द का आधार

मैंने ऐसी दुनिया जानी।

अरे है वह वक्षस्थल कहाँ

तिल में किसने ताड़ छिपाया

कैसे भेंट तुम्हारी ले लूँ

जानकर अनजान बन जा।

आज आहत मान, आहत प्राण

कैसे आँसू नयन सँभाले।

बदला ले लो, सुख की घड़ियो