Posts

Featured post

निशा निमंत्रण हरिवंशराय बच्चन संग्रह

हम आँसू की धार बहाते

हम कब अपनी बात छिपाते

खेल चुके हम फाग समय से

विश्व मनाएगा कल होली

आओ, नूतन वर्ष मना लें

साथी, नया वर्ष आया है

साथी, घर-घर आज दिवाली

कोई पार नदी के गाता

हो मधुर सपना तुम्हारा

आओ, सो जाएँ, मर जाएँ

आ, तेरे उर में छिप जाऊँ

दीप अभी जलने दे, भाई

तम ने जीवन-तरु को घेरा

आ, सोने से पहले गा लें

स्वप्न भी छल, जागरण भी

अब निशा देती निमंत्रण

गिरजे से घंटे की टन-टन

है यह पतझड़ की शाम, सखे

अंधकार बढ़ता जाता है