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हलाहल हरिवंशराय बच्चन कविता संग्रह

पहुँच तेरे अधरों के पास

और यह मिट्टी है हैरान

आसरा मत ऊपर का देख

देखने को मुट्ठीभर धूलि

हलाहल और अमिय, मद एक

हुई थी मदिरा मुझको प्राप्‍त

जगत-घट, तुझको दूँ यदि फोड़

जगत-घट को विष से कर पूर्ण

उपेक्षित हो क्षिति के दिन रात

सुरा पी थी मैंने दिन चार

हिचकते औ' होते भयभीत