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एकांत-संगीत हरिवंशराय बच्चन कविता संग्रह

अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ

दुनिया अब क्या मुझे छलेगी

यह अनुचित माँग तुम्हारी है!

सोचा, हुआ परिणाम क्‍या

क्या साल पिछला दे गया

जन्म दिन फिर आ रहा है

मेरी सीमाएँ बतला दो मेरी

बीता इकतीस बरस जीवन!

किसके लिए? किसके लिए

गिनती के गीत सुना पाया

मैं जीवन में कुछ न कर सका

प्रेयसि, याद है वह गीत

जा रही है यह लहर भी

जा कहाँ रहा है विहग भाग

मध्य निशा में पंछी बोला

छाया पास चली आती है

मैं क्यों अपनी बात सुनाऊँ

नभ में दूर-दूर तारे भी

खिड़की से झाँक रहे तारे