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मिलन यामिनी हरिवंशराय बच्चन कविता संग्रह

प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो

उसे न विश्‍व की विभूतियाँ दिखीं

मैं प्रतिध्‍वनि सुन चुका, ध्‍वनि खोजता हूँ

इस पुरातन प्रीति को नूतन कहो मत

स्वप्न में तुम हों, तुम्हीं हो जागरण में

प्राण! केवल प्यार तुमको दे सकूंगा

आज कितनी वासनामय यामिनी है

आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ

प्यार की असमर्थता कितनी करुण है

चाँदनी फैली गगन में, चाह मन में