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प्राण! केवल प्यार तुमको दे सकूंगा।
कोकिला अपनी व्यथा जिससे जताए,
सुन पपीहा पीर अपनी भूल जाए,
वह करुण उदगार तुमको दे सकूंगा;
प्राण! केवल प्यार तुमको दे सकूंगा।
प्राप्त मणि—कंचन नहीं मैंने किया है,
ध्यान तुमने कब वहाँ जाने दिया है,
आंसुओ का हार तुमको दे सकूंगा;
प्राण! केवल प्यार तुमको दे सकूंगा।
सत्य ने छूने भला मुझको दिया कब,
किन्तु उसने तुष्ट ही किसको किया कब,
स्वप्न का संसार तुमको दे सकूँगा;
प्राण! केवल प्यार तुमको दे सकूंगा।
फूल ने खिल मौन माली को दिया जो,
बीन ने स्वरकार को अर्पित किया जो,
मैं वही उपहार तुमको दे सकूंगा;
प्राण! केवल प्यार तुमको दे सकूंगा।
कोकिला अपनी व्यथा जिससे जताए,
सुन पपीहा पीर अपनी भूल जाए,
वह करुण उदगार तुमको दे सकूंगा;
प्राण! केवल प्यार तुमको दे सकूंगा।
प्राप्त मणि—कंचन नहीं मैंने किया है,
ध्यान तुमने कब वहाँ जाने दिया है,
आंसुओ का हार तुमको दे सकूंगा;
प्राण! केवल प्यार तुमको दे सकूंगा।
सत्य ने छूने भला मुझको दिया कब,
किन्तु उसने तुष्ट ही किसको किया कब,
स्वप्न का संसार तुमको दे सकूँगा;
प्राण! केवल प्यार तुमको दे सकूंगा।
फूल ने खिल मौन माली को दिया जो,
बीन ने स्वरकार को अर्पित किया जो,
मैं वही उपहार तुमको दे सकूंगा;
प्राण! केवल प्यार तुमको दे सकूंगा।
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कविता
मिलन यामिनी हरिवंशराय बच्चन
हिंदी कविता
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