Featured post

इस पुरातन प्रीति को नूतन कहो मत

इस पुरातन प्रीति को नूतन कहो मत।

की कमल ने सूर्य—किरणों की प्रतीक्षा,
ली कुमुद की चांद ने रातों परीक्षा,
इस लगन को प्राण, पागलपन कहो मत;
इस पुरातन प्रीति को नूतन कहो मत।

मेह तो प्रत्येक पावस में बरसता,
पर पपीहा आ रहा युग—युग तरसता,
प्यार का है, प्यास का क्रंदन कहो मत;
इस पुरातन प्रीति को नूतन कहो मत।

कूक कोयल पूछती किसका पता है,
वह बहारों की सदा से परिचिता है,
इस रटन को मौसमी गायन कहो मत;
इस पुरातन प्रीति को नूतन कहो मत।

विश्व की दो कामनाएँ थीं विचरतीं,
एक थी बस दूसरे की खोज करती,
इस मिलन को सिर्फ़ भुजबंधन कहो मत;
इस पुरातन प्रीति को नूतन कहो मत।

Comments