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इस पुरातन प्रीति को नूतन कहो मत।
की कमल ने सूर्य—किरणों की प्रतीक्षा,
ली कुमुद की चांद ने रातों परीक्षा,
इस लगन को प्राण, पागलपन कहो मत;
इस पुरातन प्रीति को नूतन कहो मत।
मेह तो प्रत्येक पावस में बरसता,
पर पपीहा आ रहा युग—युग तरसता,
प्यार का है, प्यास का क्रंदन कहो मत;
इस पुरातन प्रीति को नूतन कहो मत।
कूक कोयल पूछती किसका पता है,
वह बहारों की सदा से परिचिता है,
इस रटन को मौसमी गायन कहो मत;
इस पुरातन प्रीति को नूतन कहो मत।
विश्व की दो कामनाएँ थीं विचरतीं,
एक थी बस दूसरे की खोज करती,
इस मिलन को सिर्फ़ भुजबंधन कहो मत;
इस पुरातन प्रीति को नूतन कहो मत।
की कमल ने सूर्य—किरणों की प्रतीक्षा,
ली कुमुद की चांद ने रातों परीक्षा,
इस लगन को प्राण, पागलपन कहो मत;
इस पुरातन प्रीति को नूतन कहो मत।
मेह तो प्रत्येक पावस में बरसता,
पर पपीहा आ रहा युग—युग तरसता,
प्यार का है, प्यास का क्रंदन कहो मत;
इस पुरातन प्रीति को नूतन कहो मत।
कूक कोयल पूछती किसका पता है,
वह बहारों की सदा से परिचिता है,
इस रटन को मौसमी गायन कहो मत;
इस पुरातन प्रीति को नूतन कहो मत।
विश्व की दो कामनाएँ थीं विचरतीं,
एक थी बस दूसरे की खोज करती,
इस मिलन को सिर्फ़ भुजबंधन कहो मत;
इस पुरातन प्रीति को नूतन कहो मत।
Harivansh Rai Bachchan Kavita
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Poetry
कविता
मिलन यामिनी हरिवंशराय बच्चन
हिंदी कविता
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