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प्यार की असमर्थता कितनी करुण है

प्यार की असमर्थता कितनी करुण है ।

चाँद कितनी दूर है, वह जानता है,
और अपनी हद्द भी पहचानता है,
हाथ इसपर भी उठाता ही वरुण है ;
प्यार की असमर्थता कितनी करुण है ।

सृष्टि के पहले दिवस से यत्न जारी,
दूर उतनी ही निशा की श्याम सारी,
किंतु पीछा ही किए जाता अरुण है;
प्यार की असमर्थता कितनी करुण है ।

कट गए शत कल्प अपलक नेत्र खोले,
कौन आया ? सुन इसे नक्षत्र बोले,
भावना तो सर्वदा रहती तरुण है;
प्यार की असमर्थता कितनी करुण है ।

जो असंभव है उसीपर आँख मेरी,
चाहती होना अमर मृत राख मेरी,
प्यास की साँसें बचीं, बस यह शकुन है;
प्यार की असमर्थता कितनी करुण है ।

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