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हम आँसू की धार बहाते!
मानव के दुख का सागर जल
हम पी लेते बनकर बादल,
रोकर बरसाते हैं, फिर भी हम खारे को मधुर बनाते!
हम आँसू की धार बहाते!
उर मथकर कंठों तक आता,
कंठ रुँधा पाकर फिर जाता,
कितने ऐसे विष का दर्शन, हाय, नहीं मानव कर पाते!
हम आँसू की धार बहाते!
मिट जाते हम करके वितरण
अपना अमृत सरीखा सब धन!
फिर भी ऐसे बहुत पड़े जो मेरा तेरा भाग्य सिहाते!
हम आँसू की धार बहाते!
मानव के दुख का सागर जल
हम पी लेते बनकर बादल,
रोकर बरसाते हैं, फिर भी हम खारे को मधुर बनाते!
हम आँसू की धार बहाते!
उर मथकर कंठों तक आता,
कंठ रुँधा पाकर फिर जाता,
कितने ऐसे विष का दर्शन, हाय, नहीं मानव कर पाते!
हम आँसू की धार बहाते!
मिट जाते हम करके वितरण
अपना अमृत सरीखा सब धन!
फिर भी ऐसे बहुत पड़े जो मेरा तेरा भाग्य सिहाते!
हम आँसू की धार बहाते!
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Poetry
कविता
निशा निमन्त्रण हरिवंशराय बच्चन
हिंदी कविता
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