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कवि तू जा व्यथा यह झेल।
वेदना आई शरण में
गीत ले गीले नयन में,
क्या इसे निज द्वार से तू आज देगा ठेल।
कवि तू जा व्यथा यह झेल।
पोंछ इसके अश्रुकण को,
अश्रुकण-सिंचित वदन को,
यह दुखी कब चाहती है कलित क्रीड़ा-केलि।
कवि तू जा व्यथा यह झेल।
है कहीं कोई न इसका,
यह पकड़ ले हाथ जिसका,
और तू भी आज किसका,
है किसी संयोग से ही हो गया यह मेल।
कवि तू जा व्यथा यह झेल।
वेदना आई शरण में
गीत ले गीले नयन में,
क्या इसे निज द्वार से तू आज देगा ठेल।
कवि तू जा व्यथा यह झेल।
पोंछ इसके अश्रुकण को,
अश्रुकण-सिंचित वदन को,
यह दुखी कब चाहती है कलित क्रीड़ा-केलि।
कवि तू जा व्यथा यह झेल।
है कहीं कोई न इसका,
यह पकड़ ले हाथ जिसका,
और तू भी आज किसका,
है किसी संयोग से ही हो गया यह मेल।
कवि तू जा व्यथा यह झेल।
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आकुल अंतर हरिवंशराय बच्चन
कविता
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