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आज ही आना तुम्हें था?
आज मैं पहले पहल कुछ
घूँट मधु पीने चला था,
पास मेरे आज ही क्यों विश्व आ जाना तुम्हें था।
आज ही आना तुम्हें था?
एक युग से पी रहा था
रक्त मैं अपने हृदय का,
किंतु मद्यप रूप में ही क्यों मुझे पाना तुम्हें था।
आज ही आना तुम्हें था?
तुम बड़े नाजुक समय में
मानवों को हो पकड़ते,
हे नियति के व्यंग, मैंने क्यों न पहचाना तुम्हें था।
आज ही आना तुम्हें था?
आज मैं पहले पहल कुछ
घूँट मधु पीने चला था,
पास मेरे आज ही क्यों विश्व आ जाना तुम्हें था।
आज ही आना तुम्हें था?
एक युग से पी रहा था
रक्त मैं अपने हृदय का,
किंतु मद्यप रूप में ही क्यों मुझे पाना तुम्हें था।
आज ही आना तुम्हें था?
तुम बड़े नाजुक समय में
मानवों को हो पकड़ते,
हे नियति के व्यंग, मैंने क्यों न पहचाना तुम्हें था।
आज ही आना तुम्हें था?
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आकुल अंतर हरिवंशराय बच्चन
कविता
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