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बदला ले लो, सुख की घड़ियो!
सौ-सौ तीखे काँटे आये
फिर-फिर चुभने तन में मेरे!
था ज्ञात मुझे यह होना है क्षण भंगुर स्वप्निल फुलझड़ियो!
बदला ले लो, सुख की घड़ियो!
उस दिन सपनों की झाँकी में
मैं क्षण भर को मुस्काया था,
मत टूटो अब तुम युग-युग तक, हे खारे आँसू की लड़ियो!
बदला ले लो, सुख की घड़ियो!
मैं कंचन की जंजीर पहन
क्षण भर सपने में नाचा था,
अधिकार, सदा को तुम जकड़ो मुझको लोहे की हथकड़ियो!
बदला ले लो, सुख की घड़ियो!
सौ-सौ तीखे काँटे आये
फिर-फिर चुभने तन में मेरे!
था ज्ञात मुझे यह होना है क्षण भंगुर स्वप्निल फुलझड़ियो!
बदला ले लो, सुख की घड़ियो!
उस दिन सपनों की झाँकी में
मैं क्षण भर को मुस्काया था,
मत टूटो अब तुम युग-युग तक, हे खारे आँसू की लड़ियो!
बदला ले लो, सुख की घड़ियो!
मैं कंचन की जंजीर पहन
क्षण भर सपने में नाचा था,
अधिकार, सदा को तुम जकड़ो मुझको लोहे की हथकड़ियो!
बदला ले लो, सुख की घड़ियो!
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आकुल अंतर हरिवंशराय बच्चन
कविता
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