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उदित संध्या का सितारा!
थी जहाँ पल पूर्व लाली,
रह गई कुछ रेख काली,
अब दिवाकर का गया मिट तेज सारा, ओज सारा!
उदित संध्या का सितारा!
शोर स्यारों ने मचाया,
’(अंधकार) हुआ’--बताया,
रात के प्रहरी उलूकों ने उठाया स्वर कुठारा!
उदित संध्या का सितारा!
काटती थी धार दिन भर
पाँव जिसके तेज चलकर,
चौंकना मत, अब गिरेगा टूट दरिया का कगारा!
उदित संध्या का सितारा!
थी जहाँ पल पूर्व लाली,
रह गई कुछ रेख काली,
अब दिवाकर का गया मिट तेज सारा, ओज सारा!
उदित संध्या का सितारा!
शोर स्यारों ने मचाया,
’(अंधकार) हुआ’--बताया,
रात के प्रहरी उलूकों ने उठाया स्वर कुठारा!
उदित संध्या का सितारा!
काटती थी धार दिन भर
पाँव जिसके तेज चलकर,
चौंकना मत, अब गिरेगा टूट दरिया का कगारा!
उदित संध्या का सितारा!
Harivansh Rai Bachchan Kavita
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Poem
Poetry
कविता
निशा निमन्त्रण हरिवंशराय बच्चन
हिंदी कविता
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