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उसने अपना सिद्धान्‍त न बदला मात्र लेश

उसने अपना सिद्धान्‍त न बदला मात्र लेश,
पलटा शासन, कट गई क़ौम, बँट गया देश,
वह एक शिला थी निष्‍ठा की ऐसी अविकल,
सातों सागर
का बल जिसको
दहला न सका।

छा गया क्षितिज तक अंधक-अंधड़-अंधकार,
नक्षत्र, चाँद, सूरज ने भी ली मान हार,
वह दीपशिखा थी एक ऊर्ध्‍व ऐसी अविचल,
उंचास पवन
का वेग जिसे
बिठला न सका।

पापों की ऐसी चली धार दुर्दम, दुर्धर,
हो गए मलिन निर्मल से निर्मल नद-निर्झर,
वह शुद्ध छीर का ऐसा था सुस्थिर सीकर,
जिसको काँजी
का सिंधु कभी
बिलगा न सका।

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