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यदि होते बीच हमारे श्री गुरुदेव आज

यदि होते बीच हमारे श्री गुरुदेव आज,
देखते, हाय, जो गिरी देश पर महा गाज,
होता विदीर्ण उनका अंतस्तल तो ज़रूर,
यह महा वेदन
किंतु प्राप्त
करता वाणी ।

हो नहीं रहा है व्यक्त आज मन का उबाल,
शब्दों कें मुख से जीभ किसी ने ली निकाल,
किस मूल केंद्र को बेधा तूने, समय क्रूर,
घावों को धोने
को अलभ्य
दृग का पानी ।

होते कवींद्र इन काली घड़ियों के त्राता,
होते रवींद्र तो मातम का तम कट जाता,
सत्यं, शिव, सुदर फिर से थापित हो पाता,
मरहम-सा बनकर देश-काल को सहलाता,
जो कहते वे
गायक-नायक
ज्ञानी-ध्यानी ।

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