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इस महा विपद में व्याकुल हो मत शीश धुनो

इस महा विपद में व्याकुल हो मत शीश धुनो,
अरविंद संत के, धर अंतर में धीर सुनो
यह महा वचन विश्वास और आशादायी--
दृढ़ खड़े रहो
चाहे जितना हो
अंधकार ।

है रही दिखाती तुम्हें मार्ग जो वर्षों से
जो तुम्हें बचा लाई है सौ संघर्षों से,
वह ज्योति, भले ही नेता आज धराशायी,
है ऊर्धवमुखी
वह नहीं सकेगी
कभी हार ।

मिथ्याँध मोह-मत्सर को जीतेगा विवेक
यह खंडित भारतवर्ष बनेगा पुन: एक,
इस महा भूमि का निश्चय है भान्याभिषेक,
मा पुन: करेगी
सब पुत्रों का
समाहार ।

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