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ओ देशवासियो, बैठ न जाओ पत्‍थर से

ओ देशवासियो, बैठ न जाओ पत्‍थर से,
ओ देशवासियो, रोओ मत यों निर्झर से,
दरख्‍वास्‍त करें, आओ, कुछ अपने ईश्‍वर से
वह सुनता है
ग़मज़ादों और
रंजीदों की।

जब सार सरकता-सा लगता जग-जीवन से,
अभिषिक्‍त करें, आओ, अपने को इस प्रण से-
हम कभी न मिटने देंगे भारत के मन से
दुनिया ऊँचे
आदर्शों की,
उम्‍मीदों की।

साधना एक युग-युग अंतर में ठनी रहे-
यह भूमि बुद्ध-बापू-से सुत की जनी रहे;
प्रार्थना एक युग-युग पृथ्‍वी पर बनी रहे
यह जाति
योगियों, संतों
और शहीदों की।

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